ग़म-ए-बारिशे

 ग़म-ए-बारिशे इसीलिए नहीं कि तुम चले गए,

बल्कि इसलिए कि हम ख़ुद को भूल गए।




कितना कुछ धुल गया आज इस बारिश में,
हाँ तुम्हारी यादों के पन्ने भी धुल गए इस बारिश में।





दिल में अनजाना सा एहसास,
जैसे बारिश चुपके से कुछ कह रही है,
न जाने कौन सी कशिश है इस बारिश में,
जो साथ में यादें भी ले आई है।





ये इश्क़ का मौसम अजीब है जनाब,
इस बारिश में कई रिश्ते धुल जाते है,
बेगानों से करते है मोहब्बत कुछ लोग,
और अपनों के ही आंसू भूल जाते है।




वो बारिश की बूंदों को बाहें फैला कर समेट लेता है,
वो जानता है कि हर बूंद उसकी ही तरह तन्हा है।






न कोई छत्रछाया है,
न कोई मोह माया है,
बारिश से ज्यादा तो मुझको
तेरी यादों ने भिगाया है।



बादल बड़े चुप-चुप से लगते हैं,
नाराज़ ख़ुद से लगते हैं,
आज पानी कहीँ से भी नहीँ बरसा,
यह भी कुछ-कुछ मुझ से लगते हैं।



## apkadostraj

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